कवि-धनंजय सिते(राही)

*आओ विश्वास का दीप जलाएँ*
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आज रात को नौ बजे-नौ मिनट हम दीप जलाएँ!
मिलकर के हम एक साथ मे-तमसो मां ज्योतिर्गमय हो जाएँ!!


 प्रतिज्ञा है यह दीप नही-अखंडता के ताकत की!
क्षिण शक्ती हो जाएगी-ईससे मारक विषाणु की!!


जितनी भी है विचर रही-दृष्ट विनाशक शक्ती है!
प्रहार उसिपर यह दीपक-निष्ठापूर्वक एक भक्ती है!!


ईश्वर से बड़ी संसार मे-कोई शक्ती नही हूई!
जिसके बल पर जगत है सारा-मानो ना मानो बात सही!!


जब मानव किसी विपदा से-सब उपाय कर के हारा है!
तब सबने अपने मजहबी-ईश्वर को ही पुकारा है!!


जितनी दृढ़ हो जिसकी आस्था-उतना उसको होता लाभ!
शास्रो का निदान यही है-ईसको तो मानेंगे आप!!


ईस पावन धरा पर जब -किसी विपदा का आतंक हूआँ!
पालनहार ने नया रुप धर-उस विपदा का अंत किया!!


श्रीराम श्रीकृष्ण प्रमाण उसिके-शास्रो मे अंकित है!
क्यो मानव तु सुक्ष्म विषाणु से-फिर ईतना भयभित है!!


 अंत समय जब आए दृष्ट का-वो अती आतंक फैलाता है!
दीप जला ईसको भी मारो-जैसे वो मारा जाता है!!
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*दिनांक-05.04.2020*
*स्वरचित मौलिक रचना*
*कवि-धनंजय सिते(राही)*
*mob-9893415829*
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