गीत
जब से तुम परदेश गये हो आँगन सूना लगता है
प्रियतम मेरे बिना तुम्हारे सावन सूना लगता है
सूनी मन की ये बगिया सूने से स्वप्न झुलाती है
मेरे मन की खुशी तो जैसै अपने गाल फुलाती है
सूना सब संसार हुआ है सूना है मन का दरपन
आओगे जब पिया पास मैं खुद को कर दूंगी अरपन
आजाओ परदेशीबाबू जोगन तुम्हें बुलाती है
मेरे मन की खुशी तो जैसै अपने गाल फुलाती है
जिन गलियों में तेरा आना जाना मुझे सुहाता था
खिड़की में से चुपके से मन देख देख हर्षाता था
अब वो खिड़की और गली हर दम ही मुझे रुलाती है
मेरे मन की खुशी तो जैसै अपने गाल फुलाती है
हर पल राह निहारूँ लगता कागा छत पर बोलेगा
लायेगा वो खबर पिया की सुनकर मनबा डोलेगा
नींद नहीं आँखों में पर बस ये ही बात सुलाती है
मेरे मन की खुशी तो जैसै अपने गाल फुलाती है
विष्णु असावा
बिल्सी ( बदायूँ )
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