गीत।
क्या अभीष्ट यू ही मिलता है
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मानव तू बाधाये लख कर ,
क्यो गतिशील प्रगति से रुकता?
कंटक पग मग निहार कर,
क्यो कंटक के आगे झुकता?
कोई समस्या नही है ऐसी
जो इस जग में सुलझ न पाये
क्यो मन को उत्पीड़ित करता
क्यो तव दृग में अश्रु आये ।।
प्रबल प्रभंजन के झोंके जब ,
नैया को है डग मग करते ।
तव नाविक का धैर्य परीक्षण,
प्रतिकूल होकर ही करते ।।
विपदा युग की एक कसौटी,
आपत्ति से क्यो डरता ही।
क्यो रुकता है क्यो झुकता है ,
क्या अभीष्ट यू हो मिलता है।।
सुबोधकुमार शर्मा
गदरपुर उत्तराखण्ड
9917535361
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