भरत नायक "बाबूजी" लोहरसिंह, रायगढ़(छ.ग.)

*"दीया बरोबर बर जा"*
      (छतीसगढ़ी गीत)
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¶दीया बरोबर बर जा, दीया बरोबर बर जा।
बनके सुघ्घर फूलझरी, बरत-बरत झर जा झर जा।।


¶भाग जाथे दीया बरे मा, घिटघिट अँधियारी।
दीया बनाले ए तन ला तँय, सुनत हस संगवारी।।
देवारी कस दीया बनके, तिल-तिल तिल-तिल जर जा जर जा।
दीया बरोबर बर जा.....।।


¶करम ला झन दोस दे गा, फूटहा करम कहिके।
नाम ला अमर करले संगी, नीक करम करिके।।
सत-धरम के डोंगा मा ए, भवसागर ले तर जा तर जा।
दीया बरोबर बर जा.....।।


¶मन-मंदिर मा करे अँजोर, अइसन दीया बार।
चँदा-सुरुज सही तँय, जगत के अँधियारी टार।।
अमर दीया एक ठन, बनके अँजोर कर जा कर जा।
दीया बरोबर बर जा.....।।
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भरत नायक "बाबूजी"
लोहरसिंह, रायगढ़(छ.ग.)
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शब्दार्थ-  बरोबर= के जैसे,  बर जा= जल जा,  देवारी= दीवाली,  घिटघिट अँधियारी= घना अँधेरा,  तँय= तू (तुम),  सँगवारी= साथी,  डोंगा= नाव,  अँजोर= उजाला,  अइसन= ऐसा।


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