भरत नायक "बाबूजी" लोहरसिंह, रायगढ़(छ.ग.)

*"प्रश्न पूछती है थरा"* (दोहे)
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*प्रश्न पूछती है धरा, करती है उद्घोष ।
बिगड़ा मेरा रूप जो, इसमें किसका दोष??


*प्रश्न पूछती है धरा, दुखमय क्यों संसार?
करते सुख की कामना, करके मुझ पर वार।।


*प्रश्न पूछती है धरा, पंछी ढूँढ़ें डाल।
कैसे लाऊँ शुद्धता? पेड़ काल के गाल।।


*प्रश्न पूछती है धरा, जंगल आस न पास।
हवा प्रदूषित क्यों हुई? थम जाए कब साँस।।


*प्रश्न पूछती है धरा, जल जीवन-आधार।
जहरीला वातावरण, दूषित है जलधार।।


*प्रश्न पूछती है धरा, मेरा कर संहार।
कैसे होगी सोच लो, जीवन नैया पार??


*प्रश्न पूछती है धरा, हवा प्रदूषित जान।
जहर बनाया वायु क्यों? जाएगी ही जान।।


*प्रश्न पूछती है धरा, क्यों बढ़ता है ताप?
अगर जली मैं जो कहीं, सभी जलोगे आप।।


*प्रश्न पूछती है धरा, मेरा सुनो सवाल।
मुझको अभी सँवार लो, होगे सब खुशहाल।।
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भरत नायक "बाबूजी"
लोहरसिंह, रायगढ़(छ.ग.)
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