*"माँ महागौरी"*(कुण्डलिया छंद)
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¶सोहे पावन रूप है, कुंद-कुसुम सम भान।
देती शक्ति अमोघ है, अष्टम् मातु महान।।
अष्टम् मातु महान, महागौरी जग जाने।
करती है कल्याण, हृदय से जो भी माने।।
कह नायक करजोरि, वृषारूढ़ा मन मोहे।
देती शुभ वरदान, चतुर्भुज देवी सोहे।।
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भरत नायक "बाबूजी"
लोहरसिंह, रायगढ़(छ.ग.)
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"काव्य रंगोली परिवार से देश-विदेश के कलमकार जुड़े हुए हैं जो अपनी स्वयं की लिखी हुई रचनाओं में कविता/कहानी/दोहा/छन्द आदि को व्हाट्स ऐप और अन्य सोशल साइट्स के माध्यम से प्रकाशन हेतु प्रेषित करते हैं। उन कलमकारों के द्वारा भेजी गयी रचनाएं काव्य रंगोली के पोर्टल/वेब पेज पर प्रकाशित की जाती हैं उससे सम्बन्धित किसी भी प्रकार का कोई विवाद होता है तो उसकी पूरी जिम्मेदारी उस कलमकार की होगी। जिससे काव्य रंगोली परिवार/एडमिन का किसी भी प्रकार से कोई लेना-देना नहीं है न कभी होगा।" सादर धन्यवाद।
भरत नायक "बाबूजी" लोहरसिंह, रायगढ़(छ.ग.)
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