*"माँ महागौरी"*(कुण्डलिया छंद)
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¶सोहे पावन रूप है, कुंद-कुसुम सम भान।
देती शक्ति अमोघ है, अष्टम् मातु महान।।
अष्टम् मातु महान, महागौरी जग जाने।
करती है कल्याण, हृदय से जो भी माने।।
कह नायक करजोरि, वृषारूढ़ा मन मोहे।
देती शुभ वरदान, चतुर्भुज देवी सोहे।।
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भरत नायक "बाबूजी"
लोहरसिंह, रायगढ़(छ.ग.)
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