आचार्य गोपाल जी               उर्फ  आजाद अकेला बरबीघा वाले

मगही लोकगीत


की कहूं हे सखी मनमा के बतिया



की कहूं हे सखी मनमा के बतिया
सोचे सोचे दरको है हम्मर छतिया 
रसे रसे हवा बहे गरजे बदरिया
 मन करे जैंतू हल पी के नगरिया
की कहूं हे सखी मनमा के बतिया
सोचे सोचे दरको है हम्मर छतिया


जहिया से गईलन सैया मोर विदेशवा
फोन नै कईलन  नै भेजलन संदेशवा
धक-धक करो है हमरो करेजवा
सैतिन से लड़लन की उनखर अखियां
की कहूं हे सखी मनमा के बतिया
सोचे सोचे दरको है हम्मर छतिया


जाड़ा में गेलन सैया हमरा ठिठुराके 
भर गर्मी रहलु हम तो कुम्हलाके
 छत पर निकलूं कैसे देबरा सब ताके
दिन कटे जैसे तैसे कटे नै रतिया
की कहूं हे सखी मनमा के बतिया
सोचे सोचे दरको है हम्मर छतिया


रही रही हम्मर फड़को है अखियां 
धक धक हम्मर धड़को है छतिया
 कतना बताऊं तो हे अंदर के बतिया
राहिया देख देख थक गेल अखियां
की कहूं हे सखी मनमा के बतिया
सोचे सोचे दरको है हम्मर छतिया


आचार्य गोपाल जी
              उर्फ 
आजाद अकेला बरबीघा वाले
 प्लस टू उच्च विद्यालय बरबीघा शेखपुरा बिहार


कोई टिप्पणी नहीं:

Featured Post

दयानन्द त्रिपाठी निराला

पहले मन के रावण को मारो....... भले  राम  ने  विजय   है  पायी,  तथाकथित रावण से पहले मन के रावण को मारो।। घूम  रहे  हैं  पात्र  सभी   अब, लगे...