आचार्य गोपाल जी  उर्फ  आजाद अकेला बरबीघा वाले 


 कैसा है आदमी


आदमी को आज मारता है आदमी
आदमी की पगड़ी उछालता है आदमी
आदमी को भ्रम मे डालता है आदमी
आदमी की उन्नति से जलता है आदमी
आदमी को सदा छलता है आदमी
आदमी से ही तो पलता है आदमी
आदमी की धैर्य को परखता है आदमी
आदमी को भ्रम मे भी रखता है आदमी
आदमी की धैर्य से डरता है आदमी
आदमी के रुप पर मरता है आदमी
देखो जग मे क्या क्या करता है आदमी
आपनी करनी का फल भुगतता है आदमी
बिधाता की अजीब रचना है आदमी
कैसा है आदमी हॉ कैसा है आदमी



बेबस न्याय की देवी


है यह न्याय की देवी, मत समझो बेकार
आंखों पर पट्टी बांधे, खड़ी न्याय के द्वार
अपना पराया देखे ना, करे उचित व्यवहार
 दोषी को ये देती सजा, सच्चे पर उपकार 
अंधा ये कानून नहीं , अंधी है सरकार
अंधे सारे लोग वो, जो इसके ठेकेदार
लूट रहे नित दिन इसको , बनकर वो गद्दार 
कहते हैं खुद को सदा , जो इसके पहरेदार
हाथ तराजू लिए खड़ी, बेबस और लाचार 
देख रही है मूक बन , वो होते अत्याचार
निर्दोषी को सजा मिले, दोषी को सत्कार 
करे क्या न्याय की देवी , जब फैला भ्रष्टाचार
अजब देश की विधि है, किंचित करें विचार
अधिवक्ता सब मौज करे, यही विधि आधार
बिकते हैं न्याय शिरोमणि, सत्य की होती हार 
कब तक ऐसी चलन रहेगी,प्रभु तू ही इसे सुधार


आचार्य गोपाल जी 
           उर्फ 
आजाद अकेला बरबीघा वाले 
प्लस टू उच्च विद्यालय बरबीघा शेखपुरा बिहार


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