"कोरोना कहर पर दोहे"
कोरोना का वायरस, दियो ऐसो बुखार।
पूरे जग में मच गया, भीषण हाहाकार।।
करोना के आने से, सीख रहे संसकार। अधुनिकता की दौड़ में भुला दिए आचार।
कोई आवे जब घरै ,जोड़ें हँस के हाथ।
फिर हाथन कूँ धुलावै ,तब बैठेंगे साथ ।।
लोग -लुगाई ना मिले ,दुर से ही मुसकाय।
करोना भयभीत किए ,कर रहे बाय-बाय।।
घर में घुसत ही पहले, हाथ धोय सब लोग। साफ - सफाई से रहे ,फिर लगावत भोग ।।
करोना ने दई सजा , घर बन गइ है जेल।
बालक -बूढ़े भूल गए, सब बाहर के खेल।।
कालिज-आफिस बंद भये,पसरौ सर्वत्र मौन। आवा -जाही रुक गई ,आवेगो अब कौन ?
सिनिटाइजर खतम भये, धोए-धोए के हाथ। अब घरै ही बना रहे , निजपरिजन के साथ।।
देश की हालत देखो , दया करो भगवान।
कोरोना के कहर से त्रस्त हुआ इनसान।।
स्वरचित
आशा जाकड़,इन्दौर
9754969596
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें