आशा त्रिपाठी

*मिलकर दीप जलाना होगा*
   तम को दूर भगाना होगा।।


सहज ,सत्य ,निर्मल तन मन से।
 प्रीति-रीति सिखलाना होगा।
*मिलकर दीप जलाना होगा*


राग द्वेष नफरत की भाषा,
धर्म की कैसी ये परिभाषा।
विषम आपदा प्रहरी जन को,
सम्मान की है केवल अभिलाषा।
राम रहीम की पुण्य धरा पर,
एकत्व भाव दिखलाना होगा।।
*मिलकर दीप जलाना होगा*


पग-पग सुमन धरा है सुरभित,
प्रकृति लुटाती मधुरिम सौरभ।
गंध-सिक्त परिवेश हमारा,
शुद्ध परिष्कृत परिमित वैभव।।
सुधा पूर्ण दैविक धरती पर,
विश्व सृजन सिखलाना होगा।
*मिलकर दीप जलाना होगा*


अद्भूत ,अविकल प्रीति भाव से,
अधरों का अभिमंत्रित गुजंन।
देशभक्ति की ज्वाला लेकर,
हर लो अँधियारों का क्रन्दन।
वायु प्रकल्कित लौ की आभा,
घर-घर में दिखलाना होगा।
*मिलकर दीप जलाना होगा*


विषम परिस्थिति विषम वेदना,
मानव विस्मृत मूढ़ चेतना।
घोर तिमिर घनघोर निराशा,
धैर्य ,संकल्प ही केवल आशा।
घोर घृणा, मन दंभ मिटाकर,
सर्वहित थाल सजाना होगा।
*मिलकर दीप जलाना होगा*


परहित अर्पित जीवन सुखमय,
त्याग,तेज,तपबल मन मधुमय।
दुखी मनुजता का आलम्बन,
उत्साह ,प्रदीप्ति का हो संचय।।
जन-जन के सूने आँगन में,
साहस की ज्योत जगाना होगा।
*मिलकर दीप जलाना होगा*


अधियांरा आकाश असीमित,
चहुँ ओर विरानी करती विस्मृत।
नियति नटी कर रही है नर्तन,
दिव्य कर्म से कर मन चंदन।
हर मानव को विषम घड़ी में,
मिलकर कदम बढ़ाना होगा,
*मिलकर दीप जलाना होगा*


कर्मवीर प्रहरी योद्धाओं,
मन आशीष हृदय है गर्वित,
ध्येय धरा पथ तुमसे शोभित,
दीपमालिका तुम्हे समर्पित,
संकल्प ,धैर्य की ध्वजा पताका
घर -घर में फहराना होगा।
*मिलकर दीप जलाना होगा*
✍आशा त्रिपाठी
      05-04-2020
      रविवार


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