अमित कुमार दवे, खड़गदा

©”अर्थ”


तू तो जीवन जी ले जग में,
अर्थ-अर्थ की बात है प्यारे।
कोई हारे अर्थ के मारे
कोई तारे अर्थ सहारे।।1।।


अपने अपने अर्थ गढ़ लिए
जग में अब जनता ने न्यारे।
अर्थ जीवन का खो बैठा है
निरर्थक व्यर्थ अर्थ बनाने में।।2।।


अर्थ की व्यवस्था में अब तुम
कितने अर्थ यहाँ गढ़वाओगे ?
अपने ही अर्थ तंत्र के खातिर
कितने अर्थ जग के दबवाओगे ?।।3।।


अब तो अर्थ की बात कर ले
जान व्यर्थ सब निर्णय कर ले।
अर्थ व्यर्थ है बस अर्थ सत्य है,
बस इतना ही तू अर्थ समझ ले।।4।।


संग सत्य है बस स्नेह अर्थ है,
दिखता जग में सब शेष व्यर्थ है,
कर्म अर्थ है बस मर्म अर्थ है,
अर्थ ही भरा सच जीवन व्यर्थ है।।5।।



सादर प्रस्तुति
© अमित कुमार दवे, खड़गदा


कोई टिप्पणी नहीं:

Featured Post

दयानन्द त्रिपाठी निराला

पहले मन के रावण को मारो....... भले  राम  ने  विजय   है  पायी,  तथाकथित रावण से पहले मन के रावण को मारो।। घूम  रहे  हैं  पात्र  सभी   अब, लगे...