*प्रकृति सौंदर्य*
पलकें बंद हुईं रजनी की
ऊषा ने ली नव अँगड़ाई
स्वर्णिम अम्बर,धरा मखमली
कलिका फूटी भर तरुणाई
सजी ओस मोती बन तृण पर
शीतल मलयज से तरु डोले
नई चेतना ,नवल उमंगों
से पंछी के तन मन बोले
दूर हुई भू की नीरसता
कण कण में छाया स्पंदन
हुई चेतना नव बीजों में
लाली का पाकर आलंबन
पिघले लघु तुषार हिम गिरि के
निर्मल जल करते ध्वनि कल कल
सागर तट बाहें फैलाकर.......
विह्वल स्वागत करता पल पल
लेकर नवल उमंग चेतना
भोर की लाली आई है।।
तम की होती हार हमेशा
सुखद संदेश ये लाई है।।
अर्चना द्विवेदी
अयोध्या
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