अर्चना पाठक 'निरंतर'

कुण्डलियाँ


आजाद पंछी
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पंछी चह चह कर रहे, हैं कितने आजाद। 
बड़े जाल में फँस गया, देखो अब सैयाद।।
देखो अब सैयाद, कैद में फँसता जाता। 
बीते दिन की याद, रहे वो हर दम गाता।। 
कहे निरंतर आज,घुटा बाँधे अब गमछी। 
कब आते हैं बाज, आजाद उड़ते पंछी।। 


अर्चना पाठक 'निरंतर'


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