_अश्क़ बस्तरी_

तेरी हर याद को दिल से मिटाना....चाहता हूँ मैं,
ख़ुदी ख़ुद से ख़ुदी को भूल जाना...चाहता हूँ मैं,


गुज़र जाए न यूँ ही बेख़याली...... में उमर सारी,
कि अब तेरी वफ़ा को आज़माना...चाहता हूँ मैं।


नहीं हूँ मैं ख़ुदा जो वक़्त को फ़िर से बदल डालूँ,
ख़ुशी रूठी उसे ही फ़िर मनाना.... चाहता हूँ मैं।


कभी ग़र आ गयी बीते दिनों की याद मुझको तो
कसम से तेरे सारे ख़त जलाना......चाहता हूँ मैं।


सुना है तुझ से ज़्यादा ख़ूबसूरत.......शह्र तेरा है,
बुला लेना कभी उस ओर आना......चाहता हूँ मैं।


शज़र के पात पीले हो रहे पतझर ये......आया है,
बहारों को घटाओं से बुलाना..........चाहता हूँ मैं।


लिये फ़िरता हूँ आँखों में समन्दर अश्क़ का मैं भी,
दरो दीवार रोके है गिराना..............चाहता हूँ मैं।


*_अश्क़ बस्तरी_*


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