अवनीश त्रिवेदी"अभय"

पेश ए ख़िदमत हैं इक नई ग़ज़ल 


तुम   जुदा   हो   गए  चैन  आता  नहीं।
बिन  तिरे  अब  मुझे  कोइ  भाता नहीं।


दिल  हमारा  जुड़ा  इस  क़दर  आपसे।
एक  पल  भी   कभी  दूर  जाता  नहीं।


चोट  लगती   इधर  दर्द    होता  उधर।
प्यार   से   तो  बड़ा   कोइ नाता  नहीं।


हैं  लिखें  गीत,  ग़ज़लें  मनोरम  बहुत।
तुम  न  जिसमें  रहो  राग  गाता  नहीं।


ये चमन तो खिला हैं अभी कुछ कमी।
आपके  बिन महक़  कोइ लाता  नहीं।


हर  ख़ुशी अब  मुकम्मल तिरे साथ है।
बिन तिरे कोइ  खुशियाँ  मनाता  नहीं।


कोशिशें की बहुत पर कभी भी "अभय"।
प्रीत    कोई   मिरी   तोड़   पाता  नहीं।


अवनीश त्रिवेदी"अभय"


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