अवनीश त्रिवेदी "अभय"

ग़ज़ल


हमे  छत  मिल  नही  पाई  नही  शिकवा दिवारों से।
लहर  दम  तोड़  देती  है  सदा मिलकर  किनारों से।


बड़े  बनना  सदा  अच्छा  नही  रहता जरा  समझो।
परिन्दे  छाँव   कब   पाते  बहुत  ऊँची  मिनारों  से।


हसीं  सूरत  हमेशा  काम  खुद  के  भी  नही आती।
खिजां  रुकती  नही  हैं  वक़्त  पर  कोई  बहारों से।


चमक  धुँधली  भले  रहती  रवायत  की  अटारी में।
मग़र  ये  मिट  नही  सकती  फ़रेबी  इन  गुबारों से।


अँधेरा  लाख  छा  जाए   मग़र  सूरज  नही  डरता।
चमक  कब  माँगता हैं वो फ़लक़ के इन सितारों से।


रवायत  जो  हमारी  है   उसे   महफ़ूज   रखना  है।
जवाँ  नस्लें   बहक   जाए   नही   नीची  दरारों  से।


सदा  मैं  ही  ग़लत  होता  नही  था  चाह  पाने को।
हमें  फ़िर  भी  छला  तुमने  फ़रेबी  इन  करारों  से।


जहाँ  की  कामयाबी की 'अभय' चाहत नही रहती।
फिसलते हम नही  है वक़्त के झिलमिल नजारों से।


अवनीश त्रिवेदी "अभय"


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