ग़ज़ल
आइना अब नही सुहाता है।
प्यार फिर से कहीं जताता है।
हर कसम तोड़ दी मेरी उसने।
आज रिश्ता मग़र निभाता है।
ज़िन्दगी के हसीं फ़सानो में।
वक़्त के साथ डूब जाता है।
खो गया दिल मेरा निगाहों में।
और कुछ भी न ख़्याल आता है।
भूलता अब नही कभी तुमको।
रोज़ यादें तमाम पाता हैं।
देखता ये जहाँ हसीं फिर भी।
आज भी रुख़ तेरा लुभाता है।
मुफ़लिसी हैं तमाम घर मे पर।
प्यार फिर भी मग़र लुटाता है।
है "अभय" भी मुरीद उनके ही।
जो जखम भूल मुस्कुराता है।
अवनीश त्रिवेदी "अभय"
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