बलराम सिंह यादव धर्म एवम अध्यात्म शिक्षक

राम नाम की महिमा


महामंत्र जोइ जपत महेसू।
कासीं मुकुति हेतु उपदेसू।।
 ।श्रीरामचरितमानस।
  रामनाम महामन्त्र है, जिसे भगवान शिवजी जपते हैं और जिसका उपदेश काशी में मुक्ति का कारण है।
।।जय सियाराम जय जय सियाराम।।
  भावार्थः---
  रामनाम ही महामन्त्र है।इसके अनेक प्रमाण हैं।यथा,,,
यत्प्रभावम् समासाद्य शुको ब्रह्मर्षि सत्तमः।
जपस्व तन्महामन्त्रम् रामनाम रसायनम्।।
(शुक पुराण)
  सारस्वततन्त्र में कहा गया है कि भगवान शिवजी ने सौ करोड़ मन्त्रों की रचना की थी।इन्हें देवताओं,राक्षसों और ऋषियों में बाँटने के बाद जो दो अक्षर शेष बचे,वही राम नाम है।विनय पत्रिका में भी गो0जी ने यही बात कही है।यथा,,,
बेगि बिलंब न कीजिये लीजै उपदेस।
बीज महामंत्र जपिये सोई, जो जपत महेस।।
  महारामायण में कहा गया है कि प्रणव(ॐ) आदि सात करोड़ महामन्त्रों  के स्वरूप श्रीरामनाम से ही प्रकाशित होते हैं।
  श्रीरामनाम का महामन्त्र इससे भी सिद्ध है कि यह रामनाम महाअपावन को भी पावन कर देता है और स्वयं पावन बना रहता है।यथा,,,
जासु पतित पावन बड़ बाना।
गावहिं कवि श्रुति संत पुराना।।
ताहि भजहि मन तजि कुटिलाई।
राम भजे गति केहि नहिं पाई।।
पाई न केहि गति पतित पावन राम भजि सुनु सठ मना।
गनिका अजामिल ब्याध गीध गजादि खल तारे घना।।
आभीर जमन किरात खस स्वपचादि अति अघरूप जे।
कहि नाम बारक तेपि पावन होहिं राम नमामि ते।।
 रामनाम का उच्चारण शुद्ध अशुद्ध,खाते पीते,चलते फिरते,शौचादि क्रिया करते समय भी और यहाँ तक कि शव(मुर्दे) को श्मशान में ले जाते समय भी किया जाय,तो भी वह मङ्गलकारी ही होता है।रामनाम के जप करने में किसी विधि विधान की आवश्यकता नहीं है जबकि अन्य सभी मन्त्रों के जप में अनेक अनुष्ठान करने पड़ते हैं और तब भी उनका अनुकूल फल मिलना आवश्यक नहीं है।क्योंकि अन्य मन्त्रों के थोड़े से भी अशुद्ध जप से अमङ्गल हो सकता है।रामनाम को कभी भी किसी भी प्रकार से जपने से सदैव मङ्गल ही होता है।यथा,,,
भाय कुभाय अनख आलसहूँ।
नाम जपत मंगल दिसि दसहूँ।।
  अन्य सभी मन्त्रों को ग्रहण करने के लिए किसी सद्गुरु से दीक्षा लेनी पड़ती है जबकि रामनाम जपने के लिए किसी दीक्षा की आवश्यकता नहीं है।रामनाम के उल्टा जप से भी बाल्मीकि जी ब्रह्म के समान हो गये।यथा,,,
उलटा नाम जपत जग जाना।
बाल्मीकि भये ब्रह्म समाना।।
  इस चौपाई का शेष भावार्थ आगामी प्रस्तुति में।
।।जय राधा माधव जय कुञ्जबिहारी।।
।।जय गोपीजनबल्लभ जय गिरिवरधारी।।


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