बलराम सिंह यादव धर्म एवम अध्यात्म शिक्षक

गोस्वामी तुलसीदास कृत हनुमान वन्दना 


।।हनुमत-स्तुति।।
 पूज्यपाद श्रीमद्गोस्वामीजी द्वारा विरचित विनय पत्रिका में राग गौरी में  श्रीहनुमानजी की स्तुति में अत्यन्त सरल भाषा में लिखा गया निम्न पद अत्यन्त लोकप्रिय है।प्रत्येक हनुमान भक्त को यह पद स्मरण कर इसका गान कर प्रभुश्री रामजी की भक्ति की कामना करनी चाहिए।---
मङ्गल-मूरति मारुत-नन्दन।
सकल अमङ्गल मूल निकन्दन।।
पवनतनय सन्तन हितकारी।
हृदय बिराजत अवधबिहारी।।
मातु-पिता,गुरु,गणपति सारद।
सिवा समेत संभु सुक नारद।।
चरन बंदि बिनवउँ सब काहू।
देहु रामपद नेह निबाहू।।
बन्दउँ रामलखन बैदेही।
जे तुलसी के परम सनेही।।
 अर्थ---
  पवनपुत्र श्रीहनुमानजी कल्याण की मूर्ति हैं।वे समस्त अमङ्गलों की जड़ काटने वाले हैं।वे पवनपुत्र सन्तों का सदैव हित करने वाले हैं।अवधबिहारी प्रभुश्री रामजी सदा इनके हृदय में विराजते हैं।इनके तथा माता-पिता,गुरूजी,श्री गणेशजी,श्रीसरस्वतीजी,माँ पार्वतीजी सहित भगवान शिवजी,श्रीशुकदेवजी,श्री नारदजी इन सभी के चरणों में प्रणाम करके मैं यह विनती करता हूँ कि प्रभुश्री रामजी के चरणकमलों में मेरा प्रेम सदैव एक सा बना रहे,यह वरदान दीजिये।अब मैं प्रभुश्री रामजी, श्रीलक्ष्मणजी और माता श्रीसीताजी को प्रणाम करता हूँ जो इस तुलसीदास के परम स्नेही और सर्वस्व हैं।
।।जय सियाराम जय जय सियाराम।।
  भावार्थः---
  सकल अमङ्गल मूल निकन्दन कहने का तात्पर्य यह है कि जिस प्रकार किसी विशाल वृक्ष की जड़ काट दी जाय तो वह वृक्ष धराशायी हो जाता है उसी प्रकार अमङ्गलों के समाप्त होने पर केवल मङ्गल ही मङ्गल रह जाते हैं।
 सन्तन हितकारी कहने का भाव यह है कि श्रीहनुमानजी सदैव सन्तजनों पर उपकार किया करते हैं।श्रीगो0जी स्वयं इसका सबसे बड़ा उदाहरण हैं जिन्होंने इन्हीं की कृपा से चित्रकूट में प्रभुश्री रामजी के दर्शनों का सौभाग्य प्राप्त किया था।
  हृदय बिराजत अवधबिहारी कहने का भाव यह है कि जब रावण वध के पश्चात लँका में श्री विभीषणजी ने प्रभुश्री रामजी को एक बहुमूल्य मणियों की माला भेंट की तो प्रभु ने वह माला माँ सीताजी को दे दी।माँ सीताजी ने वह माला अपने पुत्र श्रीहनुमानजी के गले में डाल दी।तब श्रीहनुमानजी ने उस माला के एक एक दाने को अपने दाँतों से तोड़ना प्रारम्भ कर दिया।यह देखकर श्री विभीषणजी ने थोड़ा रोष जताया और कहा कि हनुमानजी आप रहे बन्दर के बन्दर ही।इन मणियों को तोड़कर क्या देख रहे हो।तब श्रीहनुमानजी ने कहा कि मैं तो इनमें अपने प्रभुश्री रामजी व माँ सीताजी को देख रहा हूँ।तब विभीषण जी बोले कि क्या पत्थर में भी कोई हो सकता है?तब श्रीहनुमानजी ने कहा कि हमारे प्रभु तो सर्वव्यापी हैं और तभी उन्होंने अपने नखों से अपने वक्षस्थल को चीरकर यह दिखा दिया कि प्रभुश्री रामजी माँ सीताजी सहित सदैव उनके हृदय में विराजमान रहते हैं।आज भी श्रीहनुमानजी के चित्रों में प्रभुश्री रामजी व माता सीताजी को दिखाया जाता है।इसी आधार पर गो0जी ने यह लिखा--
हृदय बिराजत अवधबिहारी।
।।जय राधा माधव जय कुञ्जबिहारी।।
।।जय गोपीजनबल्लभ जय गिरिवरधारी।।


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