बलराम सिंह यादव धर्म एवम अध्यात्म शिक्षक

भगवान राम एवम जगतजननी मां सीता के चरणों मे नकित चिन्ह


पुनि मन बचन कर्म रघुनायक।
चरन कमल बन्दउँ सब लायक।।
राजिवनयन धरें धनु सायक।
भगत बिपति भंजन सुखदायक।।
 ।श्रीरामचरितमानस।
  अब मैं मन,वचन व कर्म से कमलनयन,धनुषबाण धारी,भक्तों के दुःखों के नाशक और सुख देने वाले प्रभुश्री रघुनाथजी के चरणकमलों की वन्दना करता हूँ जो सब योग्य हैं और सर्वसमर्थ भी हैं।
।।जय सियाराम जय जय सियाराम।।
  भावार्थः---
  प्रभुश्री रामजी के चरणकमलों की चर्चा पूर्व में माता सीताजी के चरणकमलों के साथ की जा चुकी है क्योंकि प्रभुश्री रामजी के दाहिने चरण में जो 24 चिन्ह हैं वही माँ के बाँयें चरण में हैं और जो 24 चिन्ह उनके बाँयें चरण में हैं, वही माँ के दाहिने चरण में हैं।
  राजीवनयन कहने का विशेष भाव यह है कि कमल के अन्य पर्यायवाची शब्दों में राजीव का अर्थ  लालकमल है।भक्तों की विपत्ति भंजन करते समय धनुषबाणधारी प्रभुश्री रामजी के नेत्र आरक्त अर्थात लाल हो जाते हैं।विद्वानों के मतानुसार वीरता व क्रोध के साथ नेत्रों का लाल हो जाना स्वाभाविक है।इसी प्रकार उदारता व प्रेम में भी नेत्र रक्तवर्ण अथवा लाल हो जाते हैं।राजीवनयन शब्द का प्रयोग प्रायः दुखियों के दुख निवारण प्रसङ्ग में किया जाता है।यथा,,,
 राजीव बिलोचन भवभय मोचन 
पाहि पाहि सरनहिं आई।।
 लँकादहन के पश्चात जब श्रीहनुमानजी प्रभुश्री रामजी को माँ सीताजी के दुःख के विषय में बताते हैं तो गो0जी ने लिखा है--
सुनि सीता दुख प्रभु सुख अयना।
भरि आये जल राजिवनयना।।
 रावणवध के उपरान्त जब देवराज इन्द्र प्रभुश्री रामजी की स्तुति करते हैं, तब वे भी उन्हें भक्तों के दुःखहर्त्ता के रूप में राजीवनयन कहते हैं।यथा,,,
अब सुनहु दीनदयाल।राजीव नयन बिसाल।।
  कमल में कोमलता, शीतलता व सुगन्ध आदि गुण होते हैं।प्रभुश्री रामजी के नेत्रों व चरणों को कमल की उपमा देने का तात्पर्य यही है कि वे भी बड़े कोमल अर्थात दयालु स्वभाव के हैं और शीतल अर्थात क्रोधरहित हैं तथा उनका यश संसार में सुगन्ध की तरह व्याप्त है।
  भगत बिपति भंजन सुखदायक कहने का भाव यह है कि विपत्ति का नाश होने पर ही सुख होता है।जब भगवान अपने आर्त्त भक्तों की विपत्ति हरते हैं तो उनके हृदय में आनन्द भर देते हैं जिससे उन्हें सुख प्राप्त होता है।
।।जय राधा माधव जय कुञ्जबिहारी।।
।।जय गोपीजनबल्लभ जय गिरिवरधारी।।


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