गोस्वामी जी द्वारा समस्त जीव जंतु सुर असुर राम भक्तों की वन्दना
रघुपति चरन उपासक जेते।
खग मृग सुर नर असुर समेते।।
बन्दउँ पद सरोज सब केरे।
जे बिनु काम राम के चेरे।।
।श्रीरामचरितमानस।
गो0जी कहते हैं कि पशु, पक्षी,देवता,मनुष्य, असुर सहित जितने प्रभुश्री रामजी के चरणों के सेवक हैं, मैं उन सभी के चरणकमलों की वन्दना करता हूँ जो प्रभुश्री राम के निष्काम सेवक हैं।
।।जय सियाराम जय जय सियाराम।।
भावार्थः---
रघुपति चरण उपासक----
इस पंक्ति से पूर्व गो0जी सुग्रीव,जाम्बवान,विभीषण आदि भक्तों की वन्दना कर चुके हैं।इन सभी की गणना प्रभुश्री रामजी के नित्य परिकरों में की जाती है अतः ये सभी अन्य उपासकों से श्रेष्ठ हैं।यहाँ अन्य उपासकों की वन्दना की गयी है जिनमें खग,मृग,देवता, मनुष्य और असुर प्रमुख हैं।सन्तों के मतानुसार श्रीजटायुजी, श्री काकभुशुण्डिजी,श्री गरुड़जी,सम्पातीजी आदि पक्षी, मृगों में वानर,भालु, मारीच,बाली आदि,
देवताओं में इन्द्र,बृहस्पति, अग्नि आदि,नर अर्थात मनुष्यों में मनु-शतरूपा, अयोध्यावासी,मिथिला वासी,चित्रकूट आदि धर्मस्थलों के निवासी, निषादराज गुह, केवट, कोलभील,असुरों में भक्त प्रहलाद, बलि,वृत्तासुर, खरदूषण आदि प्रमुख हैं।गो0जी ने इन सभी के चरणों को पद-सरोज कहा है।इसका कारण यह है कि गो0जी के मतानुसार प्रभुश्री की निष्काम भक्ति करने वाला किसी भी योनि का हो अर्थात वह पशु पक्षी, असुर किसी भी शरीर में जन्मा हो,तो वह श्रीरामजी का लोक और सारूप्य मुक्ति प्राप्त कर लेगा जिसके फलस्वरूप उसके चरण भी प्रभुश्री रामजी के चरणकमलों की तरह वन्दनीय व पूज्यनीय हो जायेंगे।अतः यहाँ इन सभी के चरणों को पद-सरोज कहना उपयुक्त ही है।
।।जय राधा माधव जय कुञ्जबिहारी।।
।।जय गोपीजनबल्लभ जय गिरिवरधारी।।
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