*जय वीणावादनी*
नित नित मैं तेरा ध्यान करूँ,
हे माँ तेरा गुणगान करूँ।
हंस सवारी मां कहलाती,
वाणी में भी है बसती।
सदमार्ग मिले हे मातेश्वरी,
जब जब वीणा है बजती।
वीणा की झंकार बजा दे,
ज्ञान का तरकश हे मां भर दे।
रज तेरे चरणों की बनूँ,
विनती मैं बारम्बार करूँ,
ज्ञानप्रदायनी वीणावादनी,
माँ तेरी जयकार करूँ।
नित नित मैं तेरा ध्यान करूँ,
हे माँ तेरा गुणगान करूँ।।.....
........भुवन बिष्ट
रानीखेत (अल्मोड़ा)
उत्तराखंड
"काव्य रंगोली परिवार से देश-विदेश के कलमकार जुड़े हुए हैं जो अपनी स्वयं की लिखी हुई रचनाओं में कविता/कहानी/दोहा/छन्द आदि को व्हाट्स ऐप और अन्य सोशल साइट्स के माध्यम से प्रकाशन हेतु प्रेषित करते हैं। उन कलमकारों के द्वारा भेजी गयी रचनाएं काव्य रंगोली के पोर्टल/वेब पेज पर प्रकाशित की जाती हैं उससे सम्बन्धित किसी भी प्रकार का कोई विवाद होता है तो उसकी पूरी जिम्मेदारी उस कलमकार की होगी। जिससे काव्य रंगोली परिवार/एडमिन का किसी भी प्रकार से कोई लेना-देना नहीं है न कभी होगा।" सादर धन्यवाद।
भुवन बिष्ट रानीखेत (अल्मोड़ा) उत्तराखंड
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