गीत - अभिनंदन हे ! दशरथ नंदन..
अभिनंदन हे ! दशरथ नंदन,
दूर करें भक्तों का क्रन्दन।
हे ! जग स्वामी, अन्तर्यामी,
तोड़ें जन पापों के बंधन।।...1
नमन तुम्हें,अतुलित बलधारी,
जन्मभूमि के त्रास कटे।
संघर्षों के प्रतिफल पाए,
अब जाकर संत्रास छटे।।
हे ! हृद स्वामी, करुणा सागर,
दया करो, हम करते वंदन।
हे ! जग स्वामी, अन्तर्यामी,
तोड़ें जन पापों के बंधन।।...2
दिगदिगंत में तुम यशधारी।
तुमसे काँपे पापाचारी।
दानव नाशक,पुण्य प्रकाशक,
तुमको प्यारी जनक दुलारी।।
दीनानाथ, भक्त के रक्षक,
तुम हो भक्त भाल का चंदन।
हे ! जग स्वामी, अन्तर्यामी,
तोड़ें जन पापों के बंधन।।...3
चन्द्रवीर सोलंकी "निर्भय"
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें