डा.नीलम

*नवजीवन*


चेहरे पर सिंदूरी आब
सोहित है सूरज भाल
आसमानी वसन ओढ़े
आ गया देखो प्रभात


भर परवाज परो में
पंछियों ने ली उड़ान
छूने चले वो आसमान
हौंसला लिए परों में


हवाओं में मस्ती छाई
दरिया में जवानी आई
जाग कर धरा ने भी
बाँह खोल ली अंगड़ाई


भौंरो की सुनकर गुनगुन 
कलियाँ भी कसमसाना लगीं
तुहिन कणों के छिटका मोती
पाख-पाख खिलने लगी


यूं भोर ने जाग्रति का
संदेश देकर
नवजीवन का स्वागत किया
नई सुबह ने सुखी जीवन का संदेश दिया।


      डा.नीलम


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