*जब चल पड़े सफर पे तो*
जब चल पड़े सफर पे तो
रास्ते रहबर हो गये
बलखाती लहराती
नागिन सी सड़कें
राह दर राह
संग-साथ साथ चली
थे दरख़्त सजदे में झुके
पर्वतों ने भी
दे दिये रास्ते
आसमां छू लूं
जब ठान ही लिया
तो देखकर इरादों
की बुलंदी
आसमां खुद
कदमों पे आ गया
जब चल पड़े सफर पे तो
डा.नीलम
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें