डा.नीलम

*मिला है गर वक्त तो*


आदमी की जात कभी
खुश नहीं रह पाती है
हर वक्त ,वक्त की
शिकायत में ही लगी
रहती है
दिया है वक्त ने 
अब वक्त तो
वक्त की कदर कर ले
मिला है गर वक्त तो 
कुछ काम नेकियों 
का कर लो
परेशानियां है 
चार दिन की
बीत ही जायेगी
उम्र की लकीरों की
पता नहीं कब
साँस  टूट जायेगी,
साँस टूटने से पहले
देश के लिए
कुछ नेक काम 
कर ले
मिला है गर वक्त तो
इंसानियत को शर्मसार
होने से बचा ले।


       डा.नीलम


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