दीपक शर्मा दिल्ली

पूछ रही है बिगड़ी हालत, उजड़े हुए जहान की,
और अभी कब तक सुलगेगी, धरती हिन्दुस्तान की
पूछ रही है पनघट की गागर, सागर की गहराई से,
पूछ रही धरती की ममता, पर्वत की ऊँचाई से,
पूछ रहे पश्चिम की झोंके, भारत की पुरवाई से,
पूछ रही बहना की राखी, बिछुड़ी हुई कलाई से,
पूछ रही सोने की चिड़िया, भूली सी पहचान की
और अभी कब तक सुलगेगी, धरती हिन्दुस्तान की
बापू की गाथा को भूले, भूले हाड़ा रानी को,
झाँसी के मैदानों को, लक्ष्मीबाई मरदानी को,
धरती के कागज़ पर लिखी, लोहू भरी कहानी को,
भूल गए राणा प्रताप की नम आँखों के पानी को,
पूछ रही है हल्दी-घाटी, अपने राजस्थान की
और अभी कब तक सुलगेगी, धरती हिन्दुस्तान की 
इतने बरस हुए लेकिन खुशहाली दूर अभी तक है,
अपमानित सज्जन अब भी दुर्जन मशहूर अभी तक हैं,
सिंहासन यौवन-धन-संपत्ति मद में चूर अभी तक हैं,
द्रौपदियों के चीर-हरण, दु:षाशन क्रूर अभी तक है,
पूछ रही विस्मृत मर्यादा, आन-बान और शान की
और अभी कब तक सुलगेगी, धरती हिन्दुस्तान की


कोई टिप्पणी नहीं:

Featured Post

दयानन्द त्रिपाठी निराला

पहले मन के रावण को मारो....... भले  राम  ने  विजय   है  पायी,  तथाकथित रावण से पहले मन के रावण को मारो।। घूम  रहे  हैं  पात्र  सभी   अब, लगे...