पूछ रही है बिगड़ी हालत, उजड़े हुए जहान की,
और अभी कब तक सुलगेगी, धरती हिन्दुस्तान की
पूछ रही है पनघट की गागर, सागर की गहराई से,
पूछ रही धरती की ममता, पर्वत की ऊँचाई से,
पूछ रहे पश्चिम की झोंके, भारत की पुरवाई से,
पूछ रही बहना की राखी, बिछुड़ी हुई कलाई से,
पूछ रही सोने की चिड़िया, भूली सी पहचान की
और अभी कब तक सुलगेगी, धरती हिन्दुस्तान की
बापू की गाथा को भूले, भूले हाड़ा रानी को,
झाँसी के मैदानों को, लक्ष्मीबाई मरदानी को,
धरती के कागज़ पर लिखी, लोहू भरी कहानी को,
भूल गए राणा प्रताप की नम आँखों के पानी को,
पूछ रही है हल्दी-घाटी, अपने राजस्थान की
और अभी कब तक सुलगेगी, धरती हिन्दुस्तान की
इतने बरस हुए लेकिन खुशहाली दूर अभी तक है,
अपमानित सज्जन अब भी दुर्जन मशहूर अभी तक हैं,
सिंहासन यौवन-धन-संपत्ति मद में चूर अभी तक हैं,
द्रौपदियों के चीर-हरण, दु:षाशन क्रूर अभी तक है,
पूछ रही विस्मृत मर्यादा, आन-बान और शान की
और अभी कब तक सुलगेगी, धरती हिन्दुस्तान की
"काव्य रंगोली परिवार से देश-विदेश के कलमकार जुड़े हुए हैं जो अपनी स्वयं की लिखी हुई रचनाओं में कविता/कहानी/दोहा/छन्द आदि को व्हाट्स ऐप और अन्य सोशल साइट्स के माध्यम से प्रकाशन हेतु प्रेषित करते हैं। उन कलमकारों के द्वारा भेजी गयी रचनाएं काव्य रंगोली के पोर्टल/वेब पेज पर प्रकाशित की जाती हैं उससे सम्बन्धित किसी भी प्रकार का कोई विवाद होता है तो उसकी पूरी जिम्मेदारी उस कलमकार की होगी। जिससे काव्य रंगोली परिवार/एडमिन का किसी भी प्रकार से कोई लेना-देना नहीं है न कभी होगा।" सादर धन्यवाद।
दीपक शर्मा दिल्ली
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