डॉ ० सम्पूर्णानंद मिश्र प्रयागराज

#एक बेटी ऐसी भी# 
‌ जब आंखें 
उसकी खुली‌
कुछ जानने 
समझने 
लायक हुई ‌
मलिन बस्तियां 
स्वागत में 
खड़ी थीं‌ उसके ‌
एक‌ गहन अंधेरा 
अगले दिन ‌का सबेरा‌ 
बाप‌ पर कर्ज  
शरीर ‌में असंख्य मर्ज 
ग़रीबी की चादर में लिपटा
इक्कीसवीं सदी का भारत
पढ़ाने ‌के लिए 
संघर्ष ‌के कागज़
की किताब 
प्रकाश के इस युग में
अब भी ढिबरी 
रोटी की तलाश में
भविष्य ‌के‌ फूलों
का खिलना 
दूर-दूर तक नहीं
फटे हुए कपड़ों 
में छिपा हुआ 
बचपन 
इमदाद के लिए
कोई हाथ नहीं 
सुनहले स्वप्न ‌
को संजोए
आंखों में धुंध 
सर्वत्र झांकती
हुई निराशा
दूर-दूर तक 
व्याप्त थी
एक‌ ऐसी बेटी 
को पिता ने 
जन्म पर उसके 
एक नायाब तोहफ़ा
उसके कोमल हाथों
में उसकी जिद़ के
बिना ही दे दिया
इक्कीसवीं सदी की
वह बेटी उसे
लिए भारत की
तसबीर ‌बदलने 
कुज्झटिकाओं से 
आच्छादित इस
सर्द में फुटपाथ पर
धीरे-धीरे चल पड़ी
एक बेटी ऐसी‌ भी!


डॉ०सम्पूर्णानंद मिश्र स्नातकोत्तर शिक्षक हिंदी केन्द्रीय विद्यालय इफको फूलपुर इलाहाबाद ( प्रयागराज)


कोई टिप्पणी नहीं:

Featured Post

दयानन्द त्रिपाठी निराला

पहले मन के रावण को मारो....... भले  राम  ने  विजय   है  पायी,  तथाकथित रावण से पहले मन के रावण को मारो।। घूम  रहे  हैं  पात्र  सभी   अब, लगे...