" पायल की झनकार"
गोकुल धाम की कुंज गलिन मैं सिर पर लेकर मटकी
संग सखिन के जा रहीं राधा अखियाँ उन पर अटकी
चंचल चपल चाल हिरनी सी रूप बड़ा मनमोहक
कमल से कोमल चरण पड़े भूमि होवे नतमस्तक
चली कामिनी जैसे घटे यामिनी पथ उज्ज्वल हो जावे
पैरों मैं बजती पायलिया हृदय मैं प्रीत राग पनपावे
पायल की झनकार से टूटा वनभूमि का स्तब्ध मौन
पतझड़ मैं आई है मानो बसन्त बहार छाई चहुँ ओर
पायल के घुँघुरु जब खनके राग मल्हार छिड़ जाए
हुआ तरंगित हृदय कान्ह का संग मैं मिल रास रचाये
छम-छम ,छनन छनन की धुन पर बदरा भी घिर आये
कृष्ण राधिका के महारास मैं संगीत की धुन बिखराये
पायल की झनकार के साथ बजता मृदंग धा- धा धिन
तिरकिट -तिरकिट थाप पड़े झनके पायल की मधुर धुन
धीरे-धीरे पाँव उठाती नव वल्लरियाँ चली हैं जातीं
वन मैं झींगुरों की प्रतिध्वनि मैं पायल की झनकार
सुर मिलाती।
✍️✍️ डॉ. निर्मला शर्मा
दौसा, राजस्थान
"काव्य रंगोली परिवार से देश-विदेश के कलमकार जुड़े हुए हैं जो अपनी स्वयं की लिखी हुई रचनाओं में कविता/कहानी/दोहा/छन्द आदि को व्हाट्स ऐप और अन्य सोशल साइट्स के माध्यम से प्रकाशन हेतु प्रेषित करते हैं। उन कलमकारों के द्वारा भेजी गयी रचनाएं काव्य रंगोली के पोर्टल/वेब पेज पर प्रकाशित की जाती हैं उससे सम्बन्धित किसी भी प्रकार का कोई विवाद होता है तो उसकी पूरी जिम्मेदारी उस कलमकार की होगी। जिससे काव्य रंगोली परिवार/एडमिन का किसी भी प्रकार से कोई लेना-देना नहीं है न कभी होगा।" सादर धन्यवाद।
डॉ. निर्मला शर्मा दौसा, राजस्थान
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