डॉ. निर्मला शर्मा  दौसा, राजस्थान

" पायल की झनकार"
गोकुल धाम की कुंज गलिन मैं सिर पर लेकर मटकी
संग सखिन के जा रहीं राधा अखियाँ उन पर अटकी
चंचल चपल चाल हिरनी सी रूप बड़ा मनमोहक
कमल से कोमल चरण पड़े भूमि होवे नतमस्तक
चली कामिनी जैसे घटे यामिनी पथ उज्ज्वल हो जावे
पैरों मैं बजती पायलिया हृदय मैं प्रीत राग पनपावे
पायल की झनकार से टूटा वनभूमि का स्तब्ध मौन
पतझड़ मैं आई है मानो बसन्त बहार छाई चहुँ ओर
पायल के घुँघुरु जब खनके राग मल्हार छिड़ जाए
हुआ तरंगित हृदय कान्ह का संग मैं मिल रास रचाये
छम-छम ,छनन छनन की धुन पर बदरा भी घिर आये
कृष्ण राधिका के महारास मैं संगीत की धुन बिखराये
पायल की झनकार के साथ बजता मृदंग धा- धा धिन
तिरकिट -तिरकिट थाप पड़े झनके पायल की मधुर धुन
धीरे-धीरे पाँव उठाती नव वल्लरियाँ चली हैं जातीं
वन मैं झींगुरों की प्रतिध्वनि मैं पायल की झनकार
सुर मिलाती।
✍️✍️  डॉ. निर्मला शर्मा
 दौसा, राजस्थान


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