हनुमान जयन्ती मुक्तक
मुक्त करो जग मारुतिनन्दन
जय जगवन्दन जय केशरीनंदन,
रोग शोक मोह जग खलभंजन,
जय महाबली जय अलख निरंजन,
नित करूँ नमन जय मारुतिनंदन।
भवबाधा हर आञ्जनेय जग,
तन मन धन अर्पण रघुनन्दन,
लाल देह नित पवनपुत्र जय,
जय वज्र देह दानव अरिमर्दन।
रुद्रावतार एकादश कपीश जय ,
बजरंगबली जग संकट मोचन,
भूत प्रेत भय सब दुःख भागे,
महावीर जय असुर निकन्दन।
सिया राम का महादूत बन
जलधि पार लंका पुर आये,
राम नाम अभिराम मनसि जो,
मिले विभीषण तन मन हर्षाए।
मातु सिया लखि छाँव अशोक द्रुम
रामभक्त चढ़ि कपि वृक्ष निहारे ,
गिरा अंगूठी सीता माँ आँचल ,
लखि हर्षित सिय जय राम उचारे।
जय जय जय हनुमान् महाप्रभु ,
संताप जगत भय शोक निवारो,
खर - दूषण अहिरावण रावण ,
इन्द्रजीत विष अहि पाप संहारो।
पहुँचे अन्वेषक प्रभु स्वर्णपुरी में ,
हरित फलित वन अशोक उजाड़े ,
रावणसुत प्रिय अक्षय खल मर्दन ,
बद्ध पाश दशमुख सम्मुख आये।
बाँध वसन कपि पूँछ जलाकर,
मेघनाद सम असुर मन हर्षाए,
चले वीर बजरंग बली प्रभु,
कूद- कूदकर लंकापुरी जलाए।
राम काज कर प्रभु शरण राम के,
धन्य धन्य प्रभु कपि हृदय लगाए,
भक्ति प्रेम अर्पण मन धन जीवन ,
बार बार प्रभु हनुमान् निहारे।
परम मीत प्रिय भाई भरत सम ,
राम नाम सह हनुमान् महाबल ,
महाकाल विकराल कपिध्वज ,
विघ्नेश्वर शत्रुंजय भज रे मन।
श्रीराम नाम जीवन अन्तस्तल,
कृपासिन्धु बन हर संकट हर,
वानरपति अतुलित बल स्वामी
जय हनुमान् ज्ञान गुण सागर।
फिर कोरोना सुरसा बन जग में,
मानव जग भक्षण मुख खोली,
जनकसुता दुःखहर्ता लंका में ,
उद्धारो प्रभु कर नाश .दानवी।
फिर संजीवन लाओ महाप्रभु ,
मनुज पड़े भू काल ग्रास बन ,
प्राण दान दे लखन लाल सम ,
आश पड़े तव कृपा सिन्धु पर।।
अष्ट सिद्धि बल बुद्धि विधाता,
हितकारी जग सब दुःख त्राता,
कार्य निवारक नित रघुनायक,
जय जय कपीश सुखदायक।।
सत्यं शिव मंगल कपिनंदन ,
हनुमान राममय तुम जगवंदन,
विघ्नविनाशक भव दुःखहारक,
हे आञ्जनेय केशरीसुखदायक।
मकरध्वज सुत महातेज बल ,
शनि पूजन दिन दे पूजनीय वर,
धन्य हुआ मकरध्वज कपिवर,
नाशक अहिरावण बना सूत्रधर।
जय हनुमान अमर जगतारक ,
जन्मदिन प्रभु हो सदा मुबारक,
हे करुणाकर शरणागतवत्सल,
महातेज तपोबल शोकनिवारक।
जै राम राम हनुमान् महातम ,
नित कृपा करो बलपुंज गदाधर,
महारुद्र हर्ता खल पशु दानव,
रोको कोराना त्रासद संहारक।
सुग्रीव सखा रक्षक किष्कन्धा,
बन सेतुबन्ध राम सुग्रीव मित्रता,
धीर वीर साहस अतिबल सुमेधा,
जय केशरीसुत अंजनि सुखदेया।
वक्षस्थल नित जय रामसियावर,
जय दीनबन्धु जय मारुतिनंदन ,
निशिवासर हनुमान् जपो मन !
मुक्त करो जग मारुति जगवन्दन।।
डॉ. राम कुमार झा " निकुंज "
रचनाः मौलिक (स्वरचित)
नई दिल्ली
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