✍️डॉ. राम कुमार झा "निकुंज" रचनाः मौलिक(स्वरचित) नई दिल्ली

 मेरे राम
बहुत    प्रतीक्षा   आप   की , आओ मेरे राम।
कोराना  रावण   विकट , हरो  करो  सत्काम।।१।।
मातम  है    फैला   हुआ , आर्तनाद  चहुँओर।
खर- दूषण  मारीच  बहु , विपदा  है  घनघोर।।२।।
पतित   पावन   पाप  हर , करो जगत् उद्धार।
निर्भय    कपटी  घूमते , धर्म     नाम    गद्दार।।३।।
पुरुषोत्तम   रघुकुलतनय ,कृपा करो सियराम।।
करुणाकर संताप हर , फिर जग हो सुखधाम।।४।।
रामलखन सियधाम में , लगी   दानव  कुदृष्टि।
कौशलेय  हे   दाशरथि , करो  कृपा की  वृष्टि।।५।।
करने   को   आतुर  पुनः , रामराज्य  विध्वंश।
कोरोना  बन   तारिका ,  कुटिल मृत्यु  दे दंश।।६।।
आर्त नैन अभिलाष मन , देख रहा तुझ भक्त।
कमलनैन परित्राण कर,तज निद्रा अरि ध्वस्त।।७।।
राम  राम अविराम  मन , सियाराम अभिराम।
रमारमण  रम  आमरण , रम्य  जयतु श्रीधाम।।८।।
रमो राम  रमणीय वन , सुरभित मन मकरन्द।
मुख सरोज सिय चन्द्रिका,निर्भय  रम आनंद।।९।।
रोग शोक मद मोह सब ,घृणा द्वेष मिथ लोभ।
भजो लखन सियराम को,कटे पाप सब क्षोभ।।१०।।
भरत भूमि   काली घटा , मचा लोक कोहराम।
दुखहर्ता   रघुवर   पुनः , आओ   मेरे       राम।।११।।
तजो मोह श्रीधाम का ,   रखो  लाज   भूधाम।
पुनः पधारो लखन  सह,  रघुपति  राघव  राम।।१२।।
हरे  राम घनश्याम  तनु ,जयतु अयोध्या धाम।
हरो सकल बाधा विविध, तारक   राजा  राम।।१३।।
सुर नर मुनि वन्दन करें,हरि हर विधि अविराम।
भज रे मन  श्रीराम को , मिले   मोक्ष  श्रीधाम।।१४।।


कवि✍️डॉ. राम कुमार झा "निकुंज"
रचनाः मौलिक(स्वरचित)
नई दिल्ली


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