डॉ. राम कुमार झा "निकुंज" रचनाः मौलिक (स्वरचित) नवदिल्ली

🙏सरस्वती काव्यकृतां महीयताम्🙏
दिनांकः १२.०४.२०२०
दिवसः रविवार
विधाः मुक्त
विषयः स्वच्छन्द
 शीर्षकः 🤔बस ✍️
खुद आबाद पथ पर चला बढ़ सच प्रेम ले मैं अनवरत,
यायावरित चलता हुआ बन अडिग पथ पल  सत्यव्रत, 
सिद्धान्त  रथ चढ़ सारथी ख़ुद शस्त्र  भी  बनके निरत, 
पतित अब स्वध्येय पथ नीलाभ से बर्बाद हूँ मैं हो गया। 


चाह   ले  सच  राह  पर   उड़ान   भरने    को चला,
पंख  उद्यम  का  लगा ले  ठान मन  कुछ   हो भला,
पुरुषार्थ मद परमार्थ  सज रथ नीतिपथ पे बढ़ चला,
विघ्न बहु रावण  बने कट  पंख  भू पर  हूँ  आ गिरा। 


अरमान  मन  अर्पण  वतन जीऊँ सदा मैं इस जमीं,
हों  उर्वरित   कुसमित फलित बंजर धरा में हो  नमी,
दीन  जो  बलहीन  नित  दुर्भाव   जन  अभिशप्त  है,
प्रभा बन शिक्षा किरण बस  चाह बन के हूँ रह  गया।


ध्वस्त सारी मंजिलें अरमान आहत छली खल भ्रष्ट से,
झूठ  नित मिथ्या  कपट जख़्मों   सितम  गम शस्त्र से,
छायी   घटा  विकराल  बन क्षत अपने बने अवसाद से,
लाचार बन आहत पड़ा निज ध्येय रथ से  हूँ गिर पड़ा।


लखि दुर्दशा कवि की  प्रभा उठ  लेखिनी  ढाढस बढ़ा,
माँ भारती पथ सारथी सेवा वतन  रत  रथ  फिर  चढ़ा,
अभिलाष तज मन स्वार्थ को परमार्थ लेखन को  गढ़ा,
हिन्दी बने गरिमा  वतन यश  सम्पदा  मत  हूँ ले खड़ा।


डॉ. राम कुमार झा "निकुंज"
रचनाः मौलिक (स्वरचित)
नवदिल्ली


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