डॉ. राम कुमार झा "निकुंज" रचना :-- मौलिक(स्वरचित)  नई दिल्ली

 कविता
🤔है विकल जनचेतना😢
कोराना   का   चाईना  घाव अति  गहरा हुआ,
जन जीवन संसार बिन उपचार के ठहरा हुआ,
मौत की ये  आँधियाँ घनघोर तम  छाया हुआ,
विकसित शक्तिशाली बहु  देश भी उससे डरा।


दर्द  भी  बैचेन हो हो संक्रमित अब ले सिसकियाँ,
धन संपदा अट्टालिका  सत्ता बेकार लगती है धरा,
खून  के  सम्बन्ध बन आशंकरख मन अब दूरियाँ, 
दहशती इस संक्रमण नैन नाक कान मुख ये मिले।
है प्रिय हाथ अब संताप बन मत्युदंड होकर खड़ा।


बार बार नित रात दिन भयभीत है मलता हुआ
साबुनें या लिक्विडें भी है हाथ से थक सा गया,
सैनेटराइज करता निरत  लगा भगाने  को पड़ा,
कमबख़्त कोराना यहाँ महाकाल बन ऐसा पड़ा।
मानो,जान का बन रक्तबीज दैत्य बनकर खड़ा।


ठप सभी शिक्षाजगत्,खत्म सारी नौकरी,
कारखानें   बंद   हैं  बढ़    रही  बेकारियाँ,
ध्वस्त सारे  राजकोष  जिंदगी   बर्बादियाँ,
सिंहिका छाया बना   कोरोना उद्यत खड़ा।
जमात बन आघात करता चहुँ फैला हुआ। 


चरमरा  सारी   व्यवस्था  न्याय  से  ले तंत्र तक ,
कूटनीति से  तकनीक  तक लाचार बन है खड़ा,
सरकार से  मजदूर  तक मज़बूर बनकर  है डरा,
बन त्रासदी संताप जग नित कोराना बढ़ता हुआ।
जन बेबसी अवसीदना रोदन घना  हँसता  हुआ।


है   विकल   जनचेतना  कैसे  बचें  इस  रोग से ,
औषधि  बिना   कैसे  करें कोराना खल  सामना,
उपचार में नित रत चिकित्सक ,नर्सें  परिचारका,
कर्मरत  नित  स्वच्छता  खु़द रुग्ण बनता है पड़ा।
पूरा  देश   कीलाबंद  रक्षण मौत से सहमा हुआ।


सारे सुखद जग शान्ति सब  विच्छिन्न बन के हैं पड़े,
रह सावधान निज स्वच्छ नित गृहवास में हैं सब डरे।
दूर हैं सब साथ रह रक्षक स्वयं हैं परस्पर संशय पड़े,
ऑनलाइन  सौविध्य जन जीवन सारथी बन के खड़े।
परहेज़ कर खरीददार कमतर संक्रमण जन है   डरा।


इस महामारी संक्रमण बचना  अगर  जन  लक्ष्य  हो,
सब साथ   में   बन  राष्ट्र का बँध एकता का  सूत्र हो,
सहयोग कर  सामर्थ्य  भर  सद्मित्र  बन  सहभागियाँ,
सरकार संग  सहकार  बन कर  युद्ध  की   तैयारियाँ ।
जीत होगी सत्य की,देखोगे रणछोड़ कोराना है खड़ा।


कवि✍️डॉ. राम कुमार झा "निकुंज"
रचना :-- मौलिक(स्वरचित) 
नई दिल्ली


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