कोरो ना बनाम जमात _
तब गीली जामात नहीं यह,
देश द्रोह चिंगारी है ।
सेवा में जो जुटे रात,दिन,
उन सबसे गद्दारी है ।।
शुक्र करो तुम भारत में हो,
अगर दूसरे मुल्क में होते ।
तो चौबिस घंटे के भीतर,
फांसी पर लटके होते ।।
डॉ शिव शरण श्रीवास्तव
(एस्ट्रो _अमल)
कोरो ना और मरकज _
को रो ना अब गुजर रहा है,
गांव, शहर, चौबारों से ।
इसको पानी, खाद मिल रहा,
मरकज और मजारों से ।।
सीमाएं तो सील हो गई,
भीड़ हटी बाजारों से ।
लेकिन खतरा बना हुआ है,
छिपे, लुके गद्दारों से ।।
डॉ शिव शरण श्रीवास्तव
(एस्ट्रो _अमल)
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