'भोर नमन'
अपनी भूलों का करे,जो जन पश्चाताप।
कटते उनके ही सदा,जीवन के संताप।।
जीवन के संताप,डगर में रोड़े होते।
सुख का हम अभिप्राय,भूलवश क्यूँ है खोते?
निंदा की लत छोड़,प्रेम की माला जपनी।
औरों में गुण देख,भूल बस देखो अपनी।।
डॉ.शुचिता अग्रवाल 'शुचिसंदीप'
तिनसुकिया, आसाम
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