डॉ वसुधा कर्नाटक

माँ रोज मरती है 


माँ तो माँ होती है
फिर भी पराया 
धन कहलाती है
रोज रोज करती है
हँसते हँसते सबकी सेवा
सबके लिए जीती है
कभी ईच्छा जताती नही
अपमान सहन करती है
फिर भी मुखपर
स्मित हास्य रखती है
भूखे पेट सो जाती है
सुनती सबकी, कहा सुनी
फिर भी करती मिन्नते 
हजार सबके लिए
रहती सबके साथ
मगर जीती है अकेले में
माँ जी कर भी
रोज रोज मरती है.....।।


माँ तो माँ होती हैं
जीती हैं सबके लिए
करती हैं सारे काम
सुबह -शाम और रात
थकान उसके मुख पर
कभी झलकती नहीं
गम के आँसू पीकर
सदा स्मित हास्य रखती हैं
दिल किसी का ना तुटे
इसलिए सबके मनपसंद के
चीजें हमेशा बनाती रहती हैं
चाहे हो सर्दी या बुखार
फिर भी कमर कसके
रसोईघर में खड़ी रहती हैं
हार कभी  मानती भी नहीं
बड़ी सहनशिलता से भरी
ममतामयी - करुणामयी होती हैं
दूसरों के लिए जीती हैं 
माँ तो माँ होती
रोज रोज मरती ......।।
डॉ।। वसुधा


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