विषय- बंजारा
विधा- मुक्तक
यायावर बंजारे दिन उनके होते हैं।
खोजी विचार वाले जो सीमित होते हैं।
यद्यपि होती क्षमता कुछ अनगिन लोगों में,
जनहित, परहित भाव कुछों में ही होते हैं।।
खोज सत्य व ज्ञान की जो भी करते थे।
खोकर अपना सब कुछ यह पथ चलते थे।
ज्ञानी, योगी, तापस, ऋषि व महापुरुष,
यायावर बन भ्रमण विश्व का करते थे।।
निज सुख वैभव लेकर जो संसार विचरते।
वे बस अपना स्वार्थ भाव लेकर ही चलते।
विश्व धरा परिवार मान जो विपदा हरते,
वे गिनती के महापुरुष ही जग में बनते।।
मैं-मेरा का भाव जिन्होंने जग हित देखा।
अपनापन का भाव प्रजा के हित में रखा।
विश्व शांति आध्यात्म ज्ञान को जन-जन मन तक,
"अलख निरंजन" भाव लिए घर-घर को देखा।।
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डॉ० धाराबल्लभ पांडेय, 'आलोक',
29, लक्ष्मी निवास, कर्नाटक पुरम,
मकेड़ी, अल्मोड़ा,
उत्तराखंड, भारत।
मोबा० 9410700432
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