डॉ० प्रभुनाथ गुप्त 'विवश' (सहायक अध्यापक, पू० मा० वि० बेलवा खुर्द, लक्ष्मीपुर, महराजगंज, उ० प्र०)

एक ग़ज़ल 
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जीवन को हर पल सजाया करो 
मुहब्बत की नदियाँ बहाया करो।


सूख जाने न पायें ये नदियाँ सभी 
बे-मतलब न पानी बहाया  करो। 


न जंगल में जाओ कुल्हाड़ी लिये 
कभी गमलों में पौधे लगाया करो।


हो न जाये रेतीली ज़मीं ये कहीं 
परिन्दों को पानी पिलाया  करो। 


तुम तो इंसान हो  'विवश' तो नहीं 
इस तरह से न आँसू बहाया करो। 


रचना- डॉ० प्रभुनाथ गुप्त 'विवश' (सहायक अध्यापक, पू० मा० वि० बेलवा खुर्द, लक्ष्मीपुर, महराजगंज, उ० प्र०)


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