*परिणाम*
परिणाम के लिए
बहुत रगड़ना पड़ता है
कंटकाकीर्ण मार्गों से
गुजरना पड़ता है
तलवों पर कुछ छाले लेकर
अपनी पीड़ा पीकर
आलोचनाओं की सरिता में
डुबकी लगाते हुए
बच्चों की एक अदद
फरमाइश लिए हुए
मन में कुछ बुदबुदाते हुए
त्योरियां चढ़ाते हुए
बूढ़े बाप की दवा लिए हुए
थकित मन से शाम को
घर आना पड़ता है!
परिणाम के लिए
बहुत रगड़ना पड़ता है।
एक अच्छी कविता की
यात्रा को ही देखो
अपनी यात्रा के क्रम में
लक्ष्य हेतु वह क्या- क्या
सहती है !
भावनाओं की आंधी में
विचारों के बीजों को
समाहित की हुई
कल्पना के खादों को पीती हुई
अपनी ही रंगत में जीती हुई
शब्दों के बीजों को
गलाती हुई
ताकि उसमें से
अर्थ की कोपलें फूट पड़े !
क्योंकि
एक सार्थक और
अच्छी कविता आसानी
से नहीं मिलती
इस क्रम में कितनी मार
सहती है
कितनी गलती है
मुठभेड़ करती है
तरह-तरह के
रंग- रूप बदलती है
इस यात्रा में
कंटकाकीर्ण मार्गों से
वह
निरंतर गुजरती है
तलवों पर कुछ छाले लेकर
तब एक सुखद और सार्थक
कविता बनती है
परिणाम के लिए
बहुत रगड़ना पड़ता है
कंटकाकीर्ण मार्गों से
गुजरना पड़ता है।
डॉ० सम्पूर्णानंद मिश्र
7458994874
email, mishrasampurna906@gmail.com
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