क्रमशः....*चौथा अध्याय*(गीता-सार)
जनम-करम मम होय अलौकिक।
करम दिब्य मम इह जग भौतिक।।
अहहि जगत जे तत्त्वइ ग्याता।
निज तन तजि ऊ मोंहे पाता।
राग-क्रोध-भय जे जन रहिता।
मोर भगति महँ जे रह निहिता।।
ग्यान रूप तप होय पवित्रा।
मम दरसन ते पायो अत्रा।।
मोंहि भजै जग जे जन जैसे।
मैं अपि भजहुँ तिनहिं इहँ तैसे।।
अस मम रहसि जानि जग ग्यानी।
मम पथ चलहिं सदा धर ध्यानी।।
जाको मिली न मम ततु-सिच्छा।
देवन्ह पूजि पाय फल-इच्छा।।
पर अर्जुन तुम्ह पूजहु मोंही।
प्राप्ती मोर मिलै जग तोहीं।।
ब्राह्मण-छत्रि-बैस्य अरु सुद्रा।
मोर प्रतीक औरु मम मुद्रा।।
गुणअरु कर्म-बर्ग अनुसारा।
रचेयु हमहिं तिन्ह कँह संसारा।।
पर तुम्ह जानउ मोंहि अकर्ता।
अहहुँ जदपि मैं तिन्हकर कर्त्ता।।
मैं परमेस्वर,मैं अबिनासी।
स्रस्टा हमहिं जगत-पुरवासी।।
दोहा-मम इच्छा नहिं करम-फल,अस्तु,न करमइ मोह।
जे जन जानहिं तत्त्व मम,तिन्ह न करम-फल सोह।।
डॉ0हरि नाथ मिश्र
9919446372 क्रमशः....
.
"काव्य रंगोली परिवार से देश-विदेश के कलमकार जुड़े हुए हैं जो अपनी स्वयं की लिखी हुई रचनाओं में कविता/कहानी/दोहा/छन्द आदि को व्हाट्स ऐप और अन्य सोशल साइट्स के माध्यम से प्रकाशन हेतु प्रेषित करते हैं। उन कलमकारों के द्वारा भेजी गयी रचनाएं काव्य रंगोली के पोर्टल/वेब पेज पर प्रकाशित की जाती हैं उससे सम्बन्धित किसी भी प्रकार का कोई विवाद होता है तो उसकी पूरी जिम्मेदारी उस कलमकार की होगी। जिससे काव्य रंगोली परिवार/एडमिन का किसी भी प्रकार से कोई लेना-देना नहीं है न कभी होगा।" सादर धन्यवाद।
डॉ0हरि नाथ मिश्र
Featured Post
दयानन्द त्रिपाठी निराला
पहले मन के रावण को मारो....... भले राम ने विजय है पायी, तथाकथित रावण से पहले मन के रावण को मारो।। घूम रहे हैं पात्र सभी अब, लगे...
-
सुन आत्मा को ******************* आत्मा की आवाज । कोई सुनता नहीं । इसलिए ही तो , हम मानवता से बहुत दूर ...
-
मुक्तक- देश प्रेम! मात्रा- 30. देश- प्रेम रहता है जिसको, लालच कभी न करता है! सर्व-समाजहित स्वजनोंका, वही बिकास तो करता है! किन्त...
-
नाम - हर्षिता किनिया पिता - श्री पदम सिंह माता - श्रीमती किशोर कंवर गांव - मंडोला जिला - बारां ( राजस्थान ) मो. न.- 9461105351 मेरी कवित...
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें