2+सुरभित आसव मधुरालय का+
वाह्याभ्यंतर शीतल होवे,
मात्र घूँट इक लेने से।
देती सुर सम शुचिता यह जो-
जीवन सकल कमाई है।।
एक स्वाद,रस एक-केंद्र यह,
समरसता का द्योतक है।
रूप-रंग का ध्यान न देवे-
क्या लघुता व बड़ाई है??
ज़मीं पे जन्नत अनुपम आलय,
लगता शिक्षा-आलय यह ।
एक भाव-व्यवहार की शिक्षा-
नीति सुष्ठ अपनाई है।।
यही है मंदिर, मस्ज़िद यह है,
गिरजाघर-गुरुद्वारा भी ।
कर लो सज़दा सब जन मिलकर-
साक़ी सकल ख़ुदाई है।।
राग-द्वेष से दूर यह आलय,
मात्र नेह की शाला है।
मेल-जोल का दे प्रसाद यह-
मधुर मिठास मिठाई है।।
नदी-धार सम अविरल बहता,
इसका आसव अमृत इव।
एक घूँट यदि गले से उतरे-
अंतरमन शीतलाई है।।
शीतल चंदन इव सुगंध ले,
तन-मन यह महकाता है।
युगों-युगों से प्यासे मन की-
औषधि,यही दवाई है।।
डॉ0हरि नाथ मिश्र
9919446372
"काव्य रंगोली परिवार से देश-विदेश के कलमकार जुड़े हुए हैं जो अपनी स्वयं की लिखी हुई रचनाओं में कविता/कहानी/दोहा/छन्द आदि को व्हाट्स ऐप और अन्य सोशल साइट्स के माध्यम से प्रकाशन हेतु प्रेषित करते हैं। उन कलमकारों के द्वारा भेजी गयी रचनाएं काव्य रंगोली के पोर्टल/वेब पेज पर प्रकाशित की जाती हैं उससे सम्बन्धित किसी भी प्रकार का कोई विवाद होता है तो उसकी पूरी जिम्मेदारी उस कलमकार की होगी। जिससे काव्य रंगोली परिवार/एडमिन का किसी भी प्रकार से कोई लेना-देना नहीं है न कभी होगा।" सादर धन्यवाद।
डॉ0हरि नाथ मिश्र
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