*मेरे द्वारा लिखित"श्रीरामचरित बखान"नामक खंडकाव्य में वर्णित'प्रभु श्रीराम का प्राकट्य'से उद्धृत अंश*
चइत मास नवमी सुभ सुकुला।
दिवस-काल दुपहर तब कुसला।।
सिर पे मुकुट गरे बनमाला।
सोभित रह प्रभु बच्छ बिसाला।।
सोभा-सिंधु नयन अभिरामा।
आयुध कर गहि घन-तन रामा।।
प्रगटे प्रभू धारि भुज चारी।
रूप बिराट नाथ अवतारी।।
लखि माता कौसल्या बिस्मित।
करन लगीं स्तुति अस बिस्मृत।।
हे अनंत प्रभु तुम्ह गुन-धामा।
माया परे ग्यान-सुख-ग्रामा।।
लछिमी-पति ब्रह्मांड निकाया।
देवहु तुमहिं संत जन छाया।।
देखि मातु अस बिस्मित नाथा।
पूर्ब-जन्म कै कह सब गाथा।।
तासु हृदय बत्सल्यहि भावा।
मातु-पुत्र हिय स्नेह जगावा।।
कह कौसल्या तब भगवाना।
धारहु नाथ सिसुहि कै बाना।।
मातु बचन सुनि प्रभू अनूपा।
कीन्हा रुदन तुरत सिसु-रूपा।।
दसरथ- भवन भब्य संगीता।
होवन लगीं सुमंगल गीता।।
नृप दसरथ कहँ देहिं बधाई।
पुरवासी सभ धाई-धाई।।
दोहा-मागध-बंदी-सूत जन,लगे करन गुन-गान।
कीन्ह बिदाई सभें कहँ, नृप दै धन-सम्मान।।
सबिता तहँ ठाढ़े रहे,एक मास पर्यन्त।
दिवस-निसा नहिं भान रह,महिमा नाथ अनंत।।
©डॉ0हरि नाथ मिश्र
9919446372
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