डॉ0हरि नाथ मिश्र अयोध्या

*मेरे द्वारा लिखित"श्रीरामचरित बखान"नामक खंडकाव्य में वर्णित'प्रभु श्रीराम का प्राकट्य'से उद्धृत अंश*
 
चइत मास नवमी सुभ सुकुला।
दिवस-काल दुपहर तब कुसला।।


सिर पे मुकुट गरे बनमाला।
सोभित रह प्रभु बच्छ बिसाला।।


सोभा-सिंधु नयन अभिरामा।
आयुध कर गहि घन-तन रामा।।


प्रगटे प्रभू धारि भुज चारी।
रूप बिराट नाथ अवतारी।।


लखि माता कौसल्या बिस्मित।
करन लगीं स्तुति अस बिस्मृत।।


हे अनंत प्रभु तुम्ह गुन-धामा।
माया परे ग्यान-सुख-ग्रामा।।


लछिमी-पति ब्रह्मांड निकाया।
देवहु तुमहिं संत जन छाया।।


देखि मातु अस बिस्मित नाथा।
पूर्ब-जन्म कै कह सब गाथा।।


तासु हृदय बत्सल्यहि भावा।
मातु-पुत्र हिय स्नेह जगावा।।


कह कौसल्या तब भगवाना।
धारहु नाथ सिसुहि कै बाना।।


मातु बचन सुनि प्रभू अनूपा।
कीन्हा रुदन तुरत सिसु-रूपा।।


दसरथ- भवन भब्य संगीता।
होवन लगीं सुमंगल गीता।।


नृप दसरथ कहँ देहिं बधाई।
पुरवासी सभ धाई-धाई।।


दोहा-मागध-बंदी-सूत जन,लगे करन गुन-गान।
        कीन्ह बिदाई सभें कहँ, नृप दै धन-सम्मान।।
        सबिता तहँ ठाढ़े रहे,एक मास पर्यन्त।
        दिवस-निसा नहिं भान रह,महिमा नाथ अनंत।।
                     ©डॉ0हरि नाथ मिश्र
                         9919446372


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