डॉ०रामबली मिश्र हरिहरपुरी

"सुन्दर सहज बहत नित चलना"


नीर सदृश चलते ही रहना।
एक जगह पर कभी न टिकना।।चरैवेति ही मूल मंत्र है।
यह जीवन का सुखद तंत्र है।।
स्थिरता मेँ जीवन नीरस।
गत्यात्मकता सहज दिव्य रस।।
स्थिरता में राजनीति है।
छिपी हुई अति कुटिल नीति है।।
जो गतिमान वही वैज्ञानिक।
बनत सकल भुवन का ज्ञानी।।
स्थिरता में मन मलीनता।
कुण्ठित मन जननी स्थिरता।।
द्वेष भाव का होत जागरण।
गुटवंदी का नव्य व्याकरण।।
गति में छिपी हुई ऊर्जा है।
तन मन हल्का नव ऊर्जा है।।
अति पावनी चिन्तना सहजा।
मनस्थिति निर्मला दिव्यजा।।
संचित होते पाप नहीं हैं।
पुण्योदय नित जाप वही है।।
पापाचार दूर भग जाते।
जब मनुष्य गतिमय हो जाते।।
स्थिरता क्या जीवन दर्शन?
इसमें संघर्षण का स्पर्शन।।
गति ही जीवन ज्ञान यज्ञ है।
गति में बैठा मनुज विज्ञ है।।
यहाँ सर्व शक्ति का नामा।
पाता मन सदैव विश्रामा।।
भजन भाव का यही क्षेत्र है।
धर्म हेतु यह कुरुक्षेत्र है।।
विजय पताका सदा सुरक्षित।
ज्ञान नयन विकसित संरक्षित।।
सुन्दर सहज बहत नित चलना।
निर्मल नीर बने नित बहना।।
बहते बहते दूर चला जा।
चलते चलते गंग सिन्धु पा।।
यहीं खड़े श्री रामेश्वर हैं।
हरिहरपुर के परमेश्वर हैं।।
यह जीवन का चरम लक्ष्य है।
सफल मनोरथ पूर्ण साक्ष्य है।।
यही जिन्दगी की अभिलाषा।
पावन गति गढ़ती परिभाषा।।


रचनाकार:डॉ०रामबली मिश्र हरिहरपुरी
9838453801


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