"सबसे बड़ा धर्म सम्मान"
(वीर छंद)
ईश्वर ने ये दिया है दान,जग में कर सम्मान सभी का.,
कभी न होगा खाली हाथ, भर-भर मुट्ठी सबको बांटो.,
देने से बढ़ता सम्मान, कभी न कण भर खाली होगा.,
यह ईश्वर का है वरदान, अक्षुण्ण धन यह विपुल संपदा.,
समझो इसको सिन्धु समान, यह अथाह भण्डार हृदय में.,
जितना चाहो उतना बाँट, सदा लबालब भरा रहेगा.,
खुशियाँ मिलतीं अपरंपार, जरा बाँटकर देखो मित्रों.,
नहीं किसी को छोटा जान, एक भाव से सबको देखो.,
बालक हो अथवा हो वृद्ध, चाहे पुरुष या कि नारी हो.,
चाहे जो हो उसकी जाति, चाहे हिन्दू या मुस्लिम हो.,
सिक्ख ईसाई एक समान, सबको सदा बाँटते जाओ.,
हो जायेगा जीवन धन्य, हो जाओगे अमर जगत में.,
कर अपना खुद का कल्याण, सबको सम्मानित कर जग में.,
ऊँचा कर लो अपना नाम, फहराओ आकाश तिरंगा.,
इससे अच्छा और उपाय, कुछ भी नहीं अमर होने का.,
धर्म बराबर है सम्मान, सीखो बस तुम इस विद्या को.,
बन जाओगे सहज विनीत, बैठायेगी दुनिया सिर पर.,
मिल जायेगी उत्तम ख्याति, सभी मिलेंगे हाथ जोड़ते.,
सुन्दर संस्कृति का निर्माण, करते जाओगे आजीवन.,
होगा सबसे प्रिय संवाद, निर्विवाद आवाद रहोगे.,
देते चल सबको सम्मान, कदम-कदम पर यज्ञ करोगे.,
यह है असली धर्म विमान, घूम-घूम कर देते जाओ.,
करो विश्व का नित सम्मान, यही जगत की असली पूजा।
रचनाकार:
डॉ०रामबली मिश्र हरिहरपुरी
9838453801
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