"आशा करना सिर्फ राम से"
(वीर छंद)
भिक्षुक यह सारा संसार, केवल दाता रामचन्द्र हैं.,
सभी चलाते अपना पेट, अपने में ही परेशान सब.,
सदा दूसरों से ही आस, नजर गड़ाये सब बैठे हैं.,
अपना पैसा होय न खर्च, खर्च हुआ तो मृत्यु तुल्य वह.,
कैसे सुखी होय संसार, बहुत संकुचित मनःस्थिती.,
मन-दरिद्रता कभी न जाय, बनते फिर भी धनी-खरबपति.,
मची हुई जग में लूट, भाग रहे सब धन के पीछे.,
हाय हाय पैसे की बात, होती रहती जागत-सोवत.,
पैसे में ही बसता प्राण, पैसा गया तो प्राण भी गायब.,
पैसे से क्यों इतना मोह, करता रहता सदा दनुज मन.,
यह अतिशय पैशाचिक वृत्ति,अन्त समय में छूट जात सब.,
केवल साथी है सत्कर्म, सत्संगति कर अच्छा सीखो.,
करो राम से केवल प्रेम, सदा उन्हीं से आशा करना.,
त्याग और संतोष महान, सदा सिखाते श्री रामेश्वर.,
उनके चरणों की ही धूल, दे देती है विपुल सम्पदा.,
करते रहना उन्हीं से स्नेह,सारी कमियाँ पूरी होंगी.,
आशा में रहते हैं राम, कर आशा नित सिर्फ राम से.,
बन जाओगे बड़ धनवान, कर विश्वास उन्हीं पर मित्रों.,
तृष्णा हो जायेगी दूर,मित्र बनाओ सिर्फ राम को।
रचनाकार:डॉ०रामबली मिश्र हरिहरपुरी
9838453801
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