डॉ०रामबली मिश्र हरिहरपुरी

"पुस्तक दिवस"


इस जग में कोई नहीं, पुस्तक जैसा मीत।
पुस्तक से ही सीखता, पाठक शिव-पथ-गीत।।


पुस्तक ही करती सहज, मानव का निर्माण।
पुस्तक संस्कृतिवाहिका, करती जन कल्याण।।


पुस्तक में ही है भरा, सकल ज्ञान भण्डार।
पुस्तक रखो सहेज कर, कर इससे ही प्यार।।


पुस्तक में क्या क्या नहीं, सुलझती हर प्रश्न।
पुस्तक हो यदि साथ में, मने अहर्निश जश्न।।


प्रिया लगे पुस्तक अगर, समझ काम सब सिद्ध।
पिया मिलन की यह घड़ी, देती ज्ञान विशुद्ध।।


पुस्तक में हो जागरण, पुस्तक में विश्राम।
पिया बिना यह जिन्दगी, सूनी-सूनी जाम। 


प्रिय पुस्तक के संग में, रहना सीखो यार।
पाते रहोगे रात-दिन, सहज प्रिया का प्यार।।


हल्के में मत लीजिये, रख पुस्तक का ख्याल।
हो जातेगी जिन्दगी, पुस्तक से खुशहाल।।


लिखना पढ़ना पुस्तकें, रहो नित्य लवलीन।
पुस्तक को पानी समझ, खुद को समझो मीन।।


अगर रत्न की चाह है, मथना पुस्तक-सिन्धु।
मंथन से बन जाओगे, महाकाश में इन्दु।।


रचनाकार:डॉ०रामबली मिश्र हरिहरपुरी
9838453801


कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

अखिल विश्व काव्यरंगोली परिवार में आप का स्वागत है सीधे जुड़ने हेतु सम्पर्क करें 9919256950, 9450433511