डॉ०रामबली मिश्र हरिहरपुरी

"जिन्दगी"


(वीर छंद)


जीना कठिन और आसान, चाहे जैसा इसे बना लो.,
लौकिकता के भागमभाग, को यदि अच्छा समझ रहे हो.,
जाओ कूप में गिर मर आज, मत तब रोना मत पछताना.,
तृष्णामय यह सब संसार, मार रही जग की मरीचिका.,
प्यास लगे तो जल के पास, जाना सीखो सरित किनारे.,
मत देखो बालू की ढेर, चमक रही जो जल सरिता सी.,
वहाँ नहीं पानी की बूंद, केवल आभासी  मायावी.,
जिसे हो गया सच का ज्ञान, उसका जीवन बहुत सरल है.,
लिया जिन्होंने मन को साध, वही जिये हैं आत्मतुष्ट हो.,
मन की इच्छाओं को छोड़, देना ही है सुख का मारग.,
जब तक मन-घोड़ा बेलगाम, तबतक दुःख की स्थायी बेला.,
जीवन को करना आसान,यदि इच्छा है मन में प्यारे,.,
गीता का पढ़ना उपदेश, मन की इच्छाओं को मारो.,
जितनी होगी इच्छा न्यून, उतना ही आसान जिओगे.,
यह सारा मनजनित प्रपंच, मन को मारो मन को साधो.,
हो जायेगा मृतक समान, जब मन तब अति शान्ति मिलेगी.,
कामरोग का होगा नाश, सकल वासना जल जायेगी.,
कठिन लगेगा अति आसान, मुक्त कामना जीवन सरिता.,
यही तपस्या का प्रतिदान, सदा साधना मन असाध्य को.,
सध जायेगा मन इक रोज, सतत साधनारत रहने से।


रचनाकार:


डॉ०रामबली मिश्र हरिहरपुरी
9838453801


कोई टिप्पणी नहीं:

Featured Post

दयानन्द त्रिपाठी निराला

पहले मन के रावण को मारो....... भले  राम  ने  विजय   है  पायी,  तथाकथित रावण से पहले मन के रावण को मारो।। घूम  रहे  हैं  पात्र  सभी   अब, लगे...