"मैँ धर्म हूँ"
(वीर छंद)
मुझको जानो सुन्दर धर्म,नारी केवल नाम पड़ा है.,
मैँ ही दुर्गा काली रूप, सीता राधा सावित्री हूँ.,
मुझको ईश्वर का वरदान, मिला हुआ है इस दुनिया में.,
रचा विधाता ने अनमोल, रतन खजाना धर्म रूप में.,
मैँ ही माता मैँ रति-शक्ति, प्रेम दीवानी पूर्ण कलाकृति.,
मुझमें रहता प्रेम मिठास,मैँ ही काया मैँ ही देही.,
वैदेही का असली रूप,निःस्पृह रामचरण अनुरागिनी.,
मैँ ही प्रकृति भाव विस्तार,सदा महकती मह मह मह मह.,
मुझको समझो सृष्टि समान, मुझमें ही है पुरुष-नारियाँ.,
जो करता मेरा सम्मान, और पूजता देवि समझकर.,
करती हूँ उसका कल्याण, धारणीय मैँ सहज रूपसी.,
मुझमें मोहन शक्ति अपार, मुझपर मोहित सारी जगती.,
आदि शक्ति मैँ शिवा स्वरूप, मुझमें ही रहते शिवशंकर.,
ले मुझको कैलाश पहाड़, भजते रहते ब्रह्म रूप को.,
मैँ ही राधा का अवतार, मेरे संग थिरकते कृष्णा.,
पुरुष समाया है घनघोर, मेरे भीतर पैर तोड़कर.,
मैँ ही लक्ष्मी का अवतार, विष्णु साथ में क्षीरसागरे.,
सोची समझी हूँ रणनीति, रचा विधाता मुझ नारी को.,
मैँ ही धर्म कर्म सद्ज्ञान,नारी मेरा नाम जगत में.,
धर्म ध्वजा का मैँ विस्तार, करती रहती चलती फिरती.,
सर्वगुणी मैँ अपरंपार, मेरे बिन सूनी यह धरती.,
जो जपता है मुझको रोज, वही पुरुष है वही धर्म है।
रचनाकार:
डॉ०रामबली मिश्र हरिहरपुरी
9838453801
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